आवाज़
- Magazine Committee, Department of Law, CU
- Sep 22, 2024
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नन्ही सी जान थी वो,
किसी का बड़ा सा अरमान थी जो।
आई थी इस विशाल जहान में,
लेकर सैकड़ो सपने अपने जेहन में।
ना जानती थी इस जलील दुनिया के कुकर्म,
ना जानती थी इन जालिम मनुष्य रूपी राक्षसों के खौफनाक धर्म।
आई थी अपने आंसुओं की बरखा लिए,
लाई थी अपने गोद में ढ़ेरों अरमान सिए।
भरना चाहती थी अपने घर को अपनी मधुर किलकारियों से,
पर टूट गया यह ख्वाब दबकर अब उसकी रुसवाईयों से।
जहान में लेकर आई थी खुशियों की बौछार,
और ले गई यहां से दुख की भरमार।
आभास भी ना था जिसे,
कि हुआ क्या है उसे,
पता ही ना था कि कौन था वो और क्या कर रहा था,
बेवजह उसके बदन को यूं क्यू छू रहा था।
एहसास ही ना था उसे क्या गलत क्या सही,
बस दर्द में यूं ही तड़प कर करहाती रही।
वो कुछ माह की नवजात क्या जाने गुड टच और बैड टच के बारे में,
वह क्या जाने नेक और बुरी नीयत को जमाने में।
अब ना कहियेगा कि लड़की ने ही लुभाया होगा,
और जाल में उसी ने फसाया होगा।
यह ना कहना कि जो हुआ उसमें लड़की की थी खामी,
कबूल कर लेना लड़के की परवरिश हो गई बेईमानी।
चीखें जिसकी दबाई जाती हैं,
इज्ज़त जिसकी उड़ाई जाती है,
वही जानता है उस दर्द को,
वही जानता है उस मर्ज को।
अब न रही वो प्यारी सी किलकारी,
ना रही वो नन्ही सी फुलवारी,
बस रह गया है खून में लतपथ जिस्म जिसका,
रो-रो कर बेहाल हो गया है खानदान उसका।
मौत का मातम मनाते मनाते कट जाएगी यह जिंदगी,
पर पता नहीं मिलेगा भी उन्हें इंसाफ या नहीं।
ना मिला है इंसाफ,
न कैद हुए दरिंदे,
कैसे कर दे माफ़,
जिनके मंसूब ही हैं गंदे।
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